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बाबा भँवरेश्वर मन्दिर धाम-आप भी जाने कैसे पड़ा नाम बाबा भँवरेश्वर


बाबा भँवरेश्वर मन्दिर धाम--


भवरेश्वर मंदिर धाम जहां पर हजारों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान शिव जी की आदि मूर्ति शिवलिंग की पूजा करते हैं  यह मंदिर उन्नाव रायबरेली लखनऊ की सीमा पर सुदौली के पास उपस्थित है यहां पर हर सोमवार एक विशाल मेला लगता है और शिवरात्रि के समय 1 महीने का मेला होता हैं । यह विशाल मंदिर सई नदी के तट पर स्थित है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार--

पौराणिक मान्यता के अनुसार जिस समय पांडव अज्ञातवास का समय व्यतीत कर रहे थे उस समय उन्होंने जहां जहां भी अपना रुकने का स्थान बनाया उस जगह पर उन्होंने शिव जी की मूर्ति की स्थापना की क्योंकि कुन्ती बगैर शिव की पूजा किये बिना जल भी ग्रहण नही करती थी। उस समय इस क्षेत्र में सई नदी के किनारे विचरण करते हुये पाण्डवों ने यहा डेरा डाला। कुन्ती की नित्य पूजा को सम्पन्न कराने के लिए महाबली भीम अपनी गदा प्रहार से विशाल काय पाषाण खण्ड तोड़
कर लाते थे और उसका अगला सिरा गदा प्रहार से ही शिव लिंग के आकार का निर्मित कर जमीन के अन्दर भयानक वेग से गाड़ देते थे। पुनः मंत्रोंच्चार के द्वारा मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद कुन्ती उसका पूजन अर्चन करती थी। ऐसे ही इस शिवलिंग की स्थापना भीम के द्वारा इस क्षेत्र में की गई थी । उस समय इनका नाम भीम के नाम पर भीमेश्वर विख्यात हुआ। समय के साथ-साथ परिवर्तन आते गये ।


मंदिर का महत्व हमारे पूर्वजों के द्वारा--



मंदिर के महत्व के विषय में हमारे पूर्वजों द्वारा बताया जाता है कि यहां पर पहले विशाल जंगल हुआ करते थे । जहां गांव से जानवर चरने के लिए आते थे। जहां एक खास स्थान पर एक गाय के आने पर उसका सारा दूध स्वत: निकलने लगता था। चरवाहे जब शाम को दूध दुहते थे तो गाय दूध नहीं देती थी । इस पर चरवाहों ने खोजबीन चालू की तो पाया कि  गाय अपना सारा दूध इस शिवलिंग पर गिरा देती थी तब उन्हें  शिवजी की यहां पर उपस्थिति  की जानकारी हुई है और  उन्होंने  पूजा अर्चना शुरू कर दी और यह बात बहुत दूर दूर तक फैल गई और वहां पर लोगों का आना शुरू हो गया ।

औरंगजेब का आक्रमण 



उस समय हमारे देश में मुग़ल शाशक औरंगजेब का शासन था यह बात उसके कानों तक पहुंची तो उसने इस शिवलिंग को खुदवाने का निर्णय लिया। वह अपनी सेना के साथ सुदौली रियासत आ धमका और मजदूरों के द्वारा उसने मूर्ति की खुदाई करवाना शुरू कर दिया हाहाकार मच गया मुगल शासक औरंगजेब उस समय मंदिरों को तोड़कर उनकी  शक्तियां देखना चाहता था मजदूर शिवलिंग की खुदाई  करते रहें  लेकिन  शिवलिंग  का  कोई 
अता पता नहीं चला जितना वह  शिवलिंग को नीचे खोदते थे उतना वह और बढ़ जाता था एक मजदूर का फावड़ा मूर्ति के ऊपरी सिरे से टकराया परिणाम स्वरूप ऊपर का थोड़ा सा हिस्सा कटकर अलग जा गिरा। उसमें से रक्त निकलने लगा। इसके बाद भी मुगलिया सल्तनत के क्रूर शासक को होश नही आया और उसने शिव लिंग में जंजीरे बंधवाकर हाथियों से मूर्ति खिचवाने का आदेश दिया। लेकिन वह उसमें भी सफल नहीं हुआ तो उसने शिवलिंग को तोड़ने का आदेश दिया लेकिन जैसे ही मजदूरों ने उस पर हथौड़े का प्रहार किया उससे हजारों की संख्या मैं भंवरे निकले और औरंगजेब की सेना पर टूट पड़े देखते ही देखते सारी सेना वहां से भाग खड़ी हुई और फिर मुड़ कर भी उस तरफ नहीं देखा तभी से भीमेश्वर से नाम बदलकर भवरेश्वर हो गया ।

आगे चलकर सुदौली के राजा रामपाल की धर्म पत्नी ने अति प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्वार करवाकर भव्य रुप दिया। आज विशाल आदि मूर्ति  शिव मंदिर भवरेश्वर धाम के नाम से दूर-दूर तक प्रसिद्ध है ।


आज हजारों की संख्या में शिवजी के भक्तगण यहां आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं भक्तों का कहना है उनकी सभी मुरादें पूरी होती है।  सावन के महीने में बड़ी संख्या में भक्तगण भोले को मनाने आते हैं।

यह स्थान उन्नाव लखनऊ रायबरेली के बॉर्डर पर स्थित है यहां पहुंचने के लिए लखनऊ रायबरेली और उन्नाव से लगभग दूरी 60 से 70 किलोमीटर तक की तय करना पड़ता है ।

आप लोगो से निवेदन है की आप भी एक बार भोले बाबा के दरबार जाये और भोले बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करे ।पोस्ट को पड़ने के लिए धन्यवाद और शेयर जरूर करे और कमेंट में जय  भवरेश्वर बाबा जरूर लिखे --




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